सोने की गिन्नियों का बंटवारा : शिक्षाप्रद कहानी | Short Moral Story On Contentment In Hindi

सोने की गिन्नियों का बंटवारा : शिक्षाप्रद कहानी | Short Moral Story On Contentment In Hindi

एक दिन की बात है. दो मित्र सोहन और मोहन अपने गाँव के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर बातें कर रहे थे. इतने में एक तीसरा व्यक्ति जतिन उनके पास आया और उनकी बातों में शामिल हो गया.

तीनों दिन भर दुनिया-जहाँ की बातें करते रहे. कब दिन ढला? कब शाम हुई? बातों-बातों में उन्हें पता ही नहीं चला. शाम को तीनों को भूख लग आई. सोहन और मोहन के पास क्रमशः ३ और ५ रोटियाँ थीं, लेकिन जतिन के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था.

सोहन और मोहन ने तय किया कि वे अपने पास की रोटियों को आपस में बांटकर खा लेंगें. जतिन उनकी बात सुनकर प्रसन्न हो गया. लेकिन समस्या यह खड़ी हो गई है कि कुल ८ रोटियों को तीनों में बराबर-बराबर कैसे बांटा जाए?

सोहन इस समस्या का समाधान निकालते हुए बोला, “हमारे पर कुल ८ रोटियाँ हैं. हम इन सभी रोटियों के ३-३ टुकड़े करते हैं. इस तरह हमारे पास कुल २४ टुकड़े हो जायेंगे. उनमें से ८-८ टुकड़े हम तीनों खा लेंगें.”

मोहन और जतिन को यह बात जंच गई और तीनों ने वैसा ही किया. रोटियाँ खाने के बाद वे तीनों उसी मंदिर की सीढ़ियों पर सो गए, क्योंकि रात काफ़ी हो चुकी थी.

रात में तीनों गहरी नींद में सोये और सीधे अगली सुबह ही उठे. सुबह जतिन ने सोहन और मोहन से विदा ली और बोला, “मित्रों! कल तुम दोनों ने अपनी रोटियों में से तोड़कर मुझे जो टुकड़े दिए, उसकी वजह से मेरी भूख मिट पाई. इसके लिए मैं तुम दोनों का बहुत आभारी हूँ. यह आभार तो मैं कभी चुका नहीं पाऊंगा. लेकिन फिर भी उपहार स्वरुप मैं तुम दोनों को सोने की ये ८ गिन्नियाँ देना चाहता हूँ.”

यह कहकर उसने सोने की ८ गिन्नियाँ उन्हें दे दी और विदा लेकर चला गया.

सोने की गिन्नियाँ पाकर सोहन और मोहन बहुत खुश हुए. उन्हें हाथ में लेकर सोहन मोहन से बोला, “आओ मित्र, ये ८ गिन्नियाँ आधी-आधी बाँट लें. तुम ४ गिन्नी लो और ४ गिन्नी मैं लेता हूँ.”

लेकिन मोहन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया. वह बोला, “ऐसे कैसे? तुम्हारी ३ रोटियाँ थीं और मेरी ५. मेरी रोटियाँ ज्यादा थीं, इसलिए मुझे ज्यादा गिन्नियाँ मिलनी चाहिए. तुम ३ गिन्नी लो और मैं ५ लेता हूँ.”

इस बात पर दोनों में बहस छोड़ गई. बहस इतनी बढ़ी कि मंदिर के पुजारी को बीच-बचाव के लिए आना पड़ा. पूछने पर दोनों ने एक दिन पहले का किस्सा और सोने की गिन्नियों की बात पुजारी जी को बता दी. साथ ही उनसे निवेदन किया कि वे ही कोई निर्णय करें. वे जो भी निर्णय करेंगे, उन्हें स्वीकार होगा.

यूँ तो पुजारी जी को मोहन की बात ठीक लगी. लेकिन वे निर्णय में कोई गलती नहीं करना चाहते थे. इसलिए बोले, “अभी तुम दोनों ये गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ. आज मैं अच्छी तरह सोच-विचार कर लेता हूँ. कल सुबह तुम लोग आना. मैं तुम्हें अपना अंतिम निर्णय बता दूंगा.

सोहन और मोहन सोने की गिन्नियाँ पुजारी जी के पास छोड़कर चले गए. देर रात तक पुजारी जी गिन्नियों के बंटवारे के बारे में सोचते रहे. लेकिन किसी उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके. सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई और वे सो गए. नींद में उन्हें एक सपना आया. उस सपने में उन्हें भगवान दिखाई पड़े. सपने में उन्होंने भगवान से गिन्नियों के बंटवारे के बारे में पूछा, तो भगवान बोले, “सोहन को १ गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को ७.”

यह सुनकर पुजारी जी हैरान रह गए और पूछ बैठे, “ऐसा क्यों प्रभु?”

तब भगवान जी बोले, “देखो, राम के पास ३ रोटियाँ थी, जिसके उसने ९ टुकड़े किये. उन ९ टुकड़ों में से ८ टुकड़े उसने ख़ुद खाए और १ टुकड़ा जतिन को दिया. वहीं मोहन में अपनी ५ रोटियों के १५ टुकड़े किये और उनमें से ७ टुकड़े जतिन को देकर ख़ुद ८ टुकड़े खाए. चूंकि सोहन ने जतिन को १ टुकड़ा दिया था और मोहन ने ७. इसलिए सोहन को १ गिन्नी मिलनी चाहिए और मोहन को ७.”

पुजारी जी भगवान के इस निर्णय पर बहुत प्रसन्न और उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देते हुए बोले, “प्रभु. मैं ऐसे न्याय की बात कभी सोच ही नहीं सकता था.”

अगले दिन जब सोहन और मोहन मंदिर आकर पुजारी जी से मिले, तो पुजारी जी ने उन्हें अपने सपने के बारे में बताते हुए अंतिम निर्णय सुना दिया और सोने की गिन्नियाँ बांट दीं.

सीख – जीवन में हम जब भी कोई त्याग करते हैं या काम करते हैं, तो अपेक्षा करते हैं कि भगवान इसके बदले हमें बहुत बड़ा फल देंगे. लेकिन जब ऐसा नहीं हो पाता, तो हम भगवान से शिकायत करने लग जाते हैं. हमें लगता है कि इतना कुछ त्याग करने के बाद भी हमें जो प्राप्त हुआ, वो बहुत कम है. भगवान ने हमारे साथ अन्याय किया है. लेकिन वास्तव में, भगवान का न्याय हमारी सोच से परे है. वह महज़ हमारे त्याग को नहीं, बल्कि समग्र जीवन का आंकलन कर निर्णय लेता है. इसलिए जो भी हमें मिला है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए और भगवान से शिकायतें नहीं करनी चाहिए. क्योंकि भगवान का निर्णय सदा न्याय-संगत होता है और हमें जीवन में जो भी मिल रहा होता है, वो बिल्कुल सही होता है.

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