भ्रष्ट कर्मचारी
अकबर बादशाह का दरबार लगा हुआ था। दरबारी अपने-अपने स्थानों पर बैठे हुए थे। बीरबल का आसन अलग से दिखाई दें रहा था।
तभी दो सिपाही एक आदमी को लेकर हाजिर हुए। उनमें से एक ने बताया, जहाँपनाह! इस आदमी को रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया है।
अकबर ने पूछा, इस आदमी को किस काम पर लगाया था ?
जहाँपनाह! यह अनाज के गोदाम में काम करता है। सिपाही बताया।
बादशाह अकबर ने उसे हवालात में बंद करने का आदेश दिया और बीरबल से बोले, बीरबल, तुम्हारी क्या राय है ! क्या इंसान को उसका पद भ्रष्टचारी बना देता है ?
बीरबल ने निवेदन किया, जहाँपनाह! मैं ऐसा नहीं समझता। मेरा विचार है कि भ्रष्टाचारी इंसान चाहे किसी भी पद पर हो, वह रिश्वत लेने का रास्ता निकाल ही लेता है।
तभी एक दरबारी ने खड़े होकर कहा, गुस्ताखी माफ हो जहाँपनाह ! मैं बीरबल की इस बात से सहमत नहीं हूँ।
ऐसे सैकड़ों काम हैं जहाँपनाह, जिन्हें करते हुए रिश्वत लेना संभव नहीं है।
बीरबल ने उस दरबारी से पूछा, पर एक-आध नाम तो बताइए वह कौन-सा काम है ?
दरबारी बोला, जैसे। …… जहाँपनाह जिसे गिरफ्तार किया गया है, उसे यमुना के किनारे बैठकर लहरें गिनने का काम सौंप दीजिए! मेरा दावा है, इस काम को करते हुए वह एक दमड़ी की भी रिश्वत नहीं ले सकेगा।
इस पर बीरबल ने कहा, जहाँपनाह! कोई भ्रष्ट कर्मचारी सुधर जाए तो अच्छा ही है। किन्तु मुझे नहीं लगता, यह तरकीब कुछ काम करेगी।
दरबारी ने जोर देते हुए कहा, जरूर काम करेगी। आजमाकर तो देखिए।
बादशाह अकबर ने पूरी बात ध्यान से सुनी और उस कर्मचारी को नए काम पर लगा दिया।
वह कर्मचारी सुबह से शाम तक यमुना के किनारे पर बैठा रहता और यमुना में उठने वाली लहरों की गिनती करता रहता। धीरे-धीरे एक सप्ताह बीत गया।
एक दिन दरबारी ने बीरबल से पूछा, बीरबल सात दिन हो गए हैं। अब तक उस आदमी के बारे में कोई शिकायत नहीं मिली।
बीरबल ने धीरे से हाँ कहा और चुप हो गए। किन्तु उन्हें विश्वास नहीं था कि वह आदमी सुधर गया होगा।
उन्होंने बादशाह से निवेदन किया, जहाँपनाह! क्यों न, वहाँ चलकर खुद देखा जाए।
अकबर ने कहा, हाँ बीरबल, कल सुबह हम वहाँ खुद जाएँगे। दूसरे दिन बीरबल और बादशाह अकबर ने व्यापारी का वेश बनाया। उन्होंने एक नाव ली और यमुना के किनारे पर चल दिए।
वह कर्मचारी यमुना के किनारे बैठकर अपने रजिस्टर में कुछ लिख रहा था।
तभी बीरबल की नाव किनारे के पास पहुंची। कर्मचारी वहीं से चिल्लाया, ऐ तुम लोग क्या कर रहे हो ?
व्यापारी बने हुए बीरबल ने कहा, भैया हम अपनी नाव चला रहे हैं। आपको कोई परेशानी हुई क्या ?
वह आदमी वही से चिल्लाया, क्या तुम्हें पता नहीं है कि बादशाह सलामत ने मुझे यमुना की लहरों का हिसाब रखने के लिए नियुक्त किया है।
तुमने मेरा सारा हिसाब गड़बड़ कर दिया। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।
बीरबल बोले, सचमुच हमसे भूल हो गई है। हम माफी माँगते हैं। कर्मचारी बोला, मैं ऐसे माफ नहीं कर सकता।
हाँ अगर तुम लोग पचास अशर्फियाँ दो तो माफ कर सकता हूँ। यह तो बहुत ज्यादा हैं भैया। कुछ तो कम करो। बीरबल बोले।
नहीं इससे कम पर समझौता नहीं हो सकता। कर्मचारी बोला।
तभी व्यापारी के कपड़े फ्मे बादशाह अकबर वहाँ आ गए।
उन्होंने वहीं से कहा, नहीं हम पचास की जगह सौ देंगें।
लेकिन अशर्फियाँ नहीं। सौ कोड़े।
कर्मचारी ने ध्यान से व्यापारी की तरफ देखा।
अब उसे अपनी भूल का पता चला। वह बादशाह के पैरों में गिर पड़ा और बोला, माफ करें जहाँपनाह! मैं आपको पहचान न सका।
बादशाह ने बीरबल की ओर देखा और कहा, तुम ठीक कहते थे बीरबल! कोई भी काम हो, भ्रष्ट अफसर उसमें पैसा ऐंठने का मौका निकाल ही लेते है।
जी जहाँपनाह! आप ठीक कहते हैं। बीरबल ने धीरे से कहा और चुप हो गए।