बुद्धि की जीत
एक गाँव में कुश्ती का आयोजन हुआ था। दूर-दूर के सभी गाँवो से बड़े-बड़े पहलवान आये हुए थे। सभी पहलवान हट्टे कट्ठे थे। पहलवानों की भीड़ में कालू पहलवान सबसे दमदार था, जिसने आज तक एक भी कुश्ती नहीं हारी।
कुश्ती का प्रोग्राम चालु हुआ। बारी-बारी से सभी पहलवानों के बीच में कुश्ती हुई. कुश्ती के अंतिम पड़ाव में सभी पहलवानों को कालू से भिड़ना होता था, लेकिन कालू के सामने कोई टिक नहीं पाता था।
आख़िरकार इस कुश्ती प्रतियोगिता का विजेता भी कालू ही रहा।
गाँव के सरपंच ने कालू का हाथ ऊपर कर उसे विजेता घोषित कर दिया और इनाम की पांच लाख को स्वीकार करने के लिए मंच पर बुलाया।
कालू भरी भीड़ में चिल्लाते हुए बोला कि–क्या इस भीड़ में कोई ऐसा बंदा हैं जो मुझे हरा सकता हैं। अगर मुझसे जीत गया तो ये पांच लाख उसके और अगर हार गया तो उसको मुझे एक लाख रूपये देने होंगे। क्या किसी को ये चुनौती मंजूर हैं?
भीड़ के सभी नौजवान एक दुसरे का मुंह देखने लगे। कोई आगे नहीं आया। किसी को आगे न आता देख कालू हंसने लगा।
तभी एक दुबला-पतला आदमी आया और बोला मुझे तुमसे कुश्ती खेलनी हैं।
दोनों मैदान में उतर गए, सभी लोग कालू के लिए तालियाँ बजा रहे थे। किसी ने गुल्लू का नाम तक नहीं लिया।
अब गुल्लू और कालू के बीच कुश्ती शुरू हुई. गुल्लू किसी तरह से खुद को बचा कर आगे भाग रहा था। सभी लोग गुल्लू की मुर्खता पर हंस रहे थे।
गुल्लू को भी लग रहा था कि उसने अखाड़े के अन्दर आकर गलती कर दी हैं, लेकिन वापस बाहर गया तो एक लाख देने होंगे।
गुल्लू ने अपना दिमाग चलाया और चालाकी से उसको पीछे से पकड़ लिया और कालू को खूब गुदगुदी की।
कालू ने किसी तरह उसको छुड़ाया और सामने ले आया। अगली बार जैसे ही कालू ने हाथ उठाया गुल्लू ने उसके टांगो के निचे से निकल कर उसकी टांगे खींच दी और कालू घिर पड़ा।
भीड़ अब गुल्लू-गुल्लू करने लगी। कालू ने अपना होश खो दिया, लेकिन किसी तरह वह खड़ा हुआ। एक बार फिर दोनों आमने सामने थे। एक बार फिर गुल्लू ने कालू की टांगो के नीचे से होकर घुटनों के बीच दे मारा। कालू घिर पड़ा और फिर खड़ा नहीं हुआ।
सरपंच ने गुल्लू का हाथ ऊपर किया और उसको विजेता घोषित किया। शर्त के अनुसार गुल्लू पांच लाख जीत गया।
कहानी की सीख – बुद्धि के आगे बल को झुकना ही पड़ता हैं।