यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है – Short Moral Story In Hindi
यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था। अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है। वह रुका, पीछे मुड़कर
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यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था। अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है। वह रुका, पीछे मुड़कर
मानवता की सेवा अपने कर्म से दिया मानवता की सेवा का सन्देश महिला संत आंडाल पूजा में लीन थीं। तभी पास के गाँव के लोग आए और सहायता का आग्रह करने लगे। उन्होंने कहा कि गावं का मुखिया गंभीर रूप से बीमार
दोस्ती की परख एक बार की बात है, एक बकरी थी। वो बहुत खुशी-खुशी अपने गांव में रहती थी। वो बहुत मिलनसार थी। बहुत सारी बकरियां उसकी सहेलियां थीं। उसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। वो सभी से बात कर लेती
मनुष्य और कुत्ता ऐसे बने दोस्त कुत्ते का एक छोटा-सा पिल्ला अपने माता-पिता के साथ जंगल के पास रहता था। एक दिन उसके माता-पिता खाना ढूंढने के लिए निकले। शाम होने लगी लेकिन वे वापिस नहीं आए। पिल्ले को डर लगने लगा।
एक और आखिरी प्रयास किसी गांव में एक व्यापारी रहता था तथा उसकी भगवान में बड़ी आस्था थी। एक बार व्यापारी किसी दूसरे शहर से अपने घर लौट रहा था। बस से उतरकर वह पैदल अपने घर के रास्ते पर जा रहा
जैसी करनी वैसी भरनी एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह। उस दिन रात में कोई बारह बजे रहमानी के मुन्ने पप्पू के पेट में जाने क्या हुआ कि
आत्मप्रशंसा आत्मप्रशंसा करने का नतीजा भुगतना पड़ा दीर्घकाल तक राज करने के बाद महाराज ययाति ने अपने पुत्र को सिंहासन सौंप दिया और स्वयं बन में जाकर तप क़रने लगे। कठोर तप के फलस्वरूप वे स्वर्ग में पहुंचे। उनके तप का प्रभाव
एक नैतिक कहानी एक फकीर जो एक वृक्ष के नीचे ध्यान कर रहा था, रोज एक लकड़हारे को लकड़ी काटते ले जाते देखता था। एक दिन उससे कहा कि सुन भाई, दिन— भर लकड़ी काटता है, दो जून रोटी भी नहीं जुट
एक सेर मक्खन एक किसान एक बेकर को रोज एक सेर मक्खन बेचा करता था। एक दिन बेकर ने यह परखने के लिए मक्खन एक सेर है या नहीं, उसे तौला और पाया कि मक्खन कम था इस बात से वह गुस्सा
कौन अच्छा, कौन बुरा? ये बात महाभारत के समय की है, पांडवों और कौरवों को गुरु द्रोणाचर्य शिक्षा दे रहे थे। एक बार उनके मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने का विचार आया। उन्होंने अपने शिष्य दुर्योधन को अपने कक्ष में