अंगूठी में भगवान
अकबर बीरबल कहानी – Akbar Birbal Kahani
बादशाह अकबर ने एक बार बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम कहते हो ईश्वर सब जगह है।
बीरबल बोले, “हां बादशाह, ईश्वर हर जगह है।
इसमें कोई शक नहीं है।
” अकबर ने अपनी एक हीरे की अंगूठी निकाली और बीरबल से पूछा, ‘क्या इस अंगूठी में भी तुम्हारा भगवान है ?”
बीरबल ने जवाब दिया, “हां बादशाह! वह इस अंगूठी में भी अवश्य है।”
बादशाह बोले, “तुम मुझे इसमें दिखाओ ?”
बीरबल के पास कोई जवाब नहीं था। उसने कुछ समय मांगा। बादशाह ने उसे छः महीने का समय दिया।
बीरबल घर पहुंचा, वह परेशान था।
वह जानता था कि इस समस्या का कोई न कोई हल तो है, लेकिन वह जानता नहीं था।
वह बिना उत्तर ढूंढे बादशाह का सामना नहीं करना चाहता था।
वह कमजोर हो गया।
इस घटना के कुछ समय बाद, एक छोटा भिखारी लड़का उसके घर पर भिक्षा के लिए आया।
उसने बीरबल से पूछा, “आपको क्या परेशानी है ?
आप इतने उदास और परेशान क्यों हैं? आप एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं।
ऐसे व्यक्ति के उदास होने का कोई कारण नहीं हो सकता है।
खुशी और प्रसन्नता बुद्धिमान व्यक्ति की विशेषताएं हैं।
“सच, बीरबल बोले।”
मेरा दिल यह सुनकर खुश हुआ, लेकिन बुद्धिमानी को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।”
बीरबल ने फिर उसके और बादशाह के बीच हुई पूरी बात बतायी।
क्या आप इस बात के लिए परेशान हो रहे हैं ? मैं तुम्हें इस बात का जवाब एक पल में दे सकता हूं, लेकिन क्या आप मेरी बादशाह से व्यक्तिगत रूप से बात करवा सकते हैं ?
बीरबल राजी हो गये और उस लड़के को शाही दरबार में ले जाकर बादशाह को बोले, “जहांपनाह! आपके प्रश्न का उत्तर ये छोटा बालक भी दे सकता है।”
अकबर ने उस लड़के के साहस की प्रशंसा की और उत्तर सुनने को व्याकुल हुए।
उसने लड़के से पूछा, “अगर ईश्वर सब जगह है, तो बेटा, क्या तुम मुझे इस अंगूठी में भगवान दिखा सकते हो ?”
“जहांपनाह! लड़के ने उत्तर दिया, “मैं आपको एक पल में उत्तर दे सकता हूं, लेकिन मुझे प्यास लगी है। मैं आपके प्रश्न का उत्तर एक गिलास लस्सी पीने के बाद दूंगा।
बादशाह ने लस्सी लाने को कहा।
लड़के ने लस्सी पीनी शुरू की और बोला, “बादशाह, मैं मक्खन वाली लस्सी पीता हूं।
आपका सेवक जो लस्सी लेकर आया है वो मुझे पसन्द नहीं आई और इसमें से मक्खन नहीं निकल रहा है।”
बादशाह बोले, “यह लस्सी बहुत उम्दा है।
याद रखो, छोटे बालक, तुम बादशाह की व्यक्तिगत डेयरी से लायी गयी लस्सी पी रहे हो।”
लड़का बोला, “बहुत अच्छा! अगर जहांपनाह को विश्वास है कि इस लस्सी में मक्खन है, तो मुझे मक्खन दिखा दें।”
बादशाह जोर से हंसे और बोले, “मैं बताता हूं।
तुम इतना भी नहीं जानते कि लस्सी से मक्खन उसे बिलोने के बाद ही निकाला जा सकता है, और तुम यहां पर मुझे भगवान को दिखाने आये हो।”
“मैं कोई मूर्ख नहीं हूं, बादशाह, लड़के ने तुरन्त जवाब दिया।”
“मैं तो आपको आपके प्रश्न का ही उत्तर दे रहा हूं।”
बादशाह उलझन में पड़ गये।
लड़का उनसे बोला, “जहांपनाह, इसी तरह ईश्वर सब वस्तुओं के अन्दर हैं।
वह हर चीज, पदार्थ के अन्दर हैं उन्हें हम अपनी इन आंखों से नहीं देख सकते।
उन्हें देखने के लिए हमें अपने मन की आंखों को जगाना जरूरी है।
हम ईश्वर को महसूस कर सकते हैं और उन्हें अपनी बुद्धिमानी की आंखों से देख सकते हैं।
लेकिन उससे पहले हमें अपने शरीर के पंच तत्वों और वस्तुओं को बिलोकर अलग करना पड़ता है, दही की तरह।”
उस लड़के ने अकबर के प्रश्न का उत्तर दिया और बादशाह उससे बहुत प्रभावित हुए।
वह और भी जानना चाहते थे और लड़के से पूछा, “बच्चे! अब तुम मुझे बताओ, तुम्हारा भगवान हमेशा क्या करता रहता है ?”
बालक भिक्षुक बोला, “जहांपनाह, यह ईश्वर ही है जो हमारी संवेदनाओं को शक्ति देता है, हमारे दिमाग को समझ देता है, हमारे शरीर को ताकत देता है और यह उन्हीं की शक्ति है जिससे हम जीते और मरते हैं।
“मनुष्य सोचता है कि वही कलाकार है और अपनी कलाओं का आनन्द लेता है।
लेकिन मनुष्य तो उस शक्ति के हाथों की कठपुतली है।
“उसकी सोच से ही सल्तनत ऊपर उठती है और गिर जाती है, करोड़पति गरीब बन जाता है और गरीब करोड़पति।
उसे महसूस करने के लिए हमें अपने आपको उसे समर्पित करना पड़ता
है।
बादशाह के लिए एक छोटे भिक्षुक से ये सब सुनना एक नया अनुभव था।
अकबर अपने विचारों में लचीलापन रखते थे और इस छोटे हिन्दू भिक्षुक की बातें सुनकर ही शायद वह धार्मिक व प्रशासनिक बातों पर विचार-विमर्श के लिए मुस्लिम फकीरों
और मोलवियों के साथ हिन्दू विद्वानों को भी आमंत्रित करने लगे।
शिक्षा : अवांछनीय स्थिति में चतुराई से पेश आना चाहिए। यदि हमें किसी समस्या का हल न मिले तो इसका अर्थ यह नहीं कि उस समस्या का कोई हल नहीं है। ऐसे में अपने अधीन और साथ काम करने वालों के साथ मिलकर समस्या का हल खोजा जा सकता है।