अप्सरा और पिशाचनी में अंतर
अकबर बीरबल कहानी – Akbar Birbal Kahani
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से सवाल किया पुस्तकों में, शास्त्रों में कई बार अप्सरा और पिशाचनियों का जिक्र आता है।
इन दोनों में अंतर बता सकते हो ?”
बीरबल ने कहा “जुबानी अंतर बताने के बजाय मैं समझता हूं कि प्रत्यक्ष उन दोनों को लाकर आपके सामने खड़ा कर दिया जाए… अपने-आप-ही अंतर आपकी समझ में आ जाएगा।’
अकबर ने कहा “इससे बढ़कर अच्छी और बात क्या होगी… दोनों को लाकर पेश करो।”
अगले दिन बादशाह के सामने बीरबल ने अपनी बीवी को तथा एक सजी-धजी रूपवती वैश्या को लाकर पेश किया।
बीरबल ने बताया “जहांपनाह! यह मेरी पत्नी है… यह अप्सरा है, इनकी सेवाओं और घर-गृहस्थी से मुझे स्वर्ग का सुख इस लोक में ही मिल जाता है।”
बादशाह ने पूछा “बात समझ में नहीं आई… मैंने तो सुना है अप्सरा बहुत सुंदर होती है
तुम्हारी पत्नी तो साधारण स्त्री है, फिर भला अप्सरा कैसे हुई ?”
बीरबल ने कहा “जहांपनाह! सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती… असल गुण होता है नारी का चरित्रवान, गुणवान और पति के प्रति निष्ठावान होना।
ऐसी बीवी मिलने पर पुरुष इस लोक में ही स्वर्ग का सुख भोगता है और पत्नी को अप्सरा मानता है…।”
रुककर बीरबल ने पुनः कहा जो आपकी नजरों के सामने एक दूसरी स्त्री खड़ी है, रूप की खान है… सुंदरता की अपने आप में एक मिसाल है…यह वैश्या है…।
यह मेरी दृष्टि में पिशाचनी है।
जिस तरह पिशाचनी जिसे लग जाती है, उसका सर्वनाश करके छोड़ती है, ऐसा ही हाल इस औरत का है…इसका रूप केवल पुरुष और यह को शिकार के रूप में फांसने का चारा है…इसके चक्कर में जो पड़ जाता है, घर-बार, बाल-बच्चों सबको भूल जाता है, कमाने-धमाने का ध्यान नहीं रहता।
वह अपना स्वास्थ्य, धन और प्रतिष्ठा खोता रहता है…यह अपने चक्कर में पड़ने वाले पुरुष का सर्वनाश करके ही पीछा छोड़ती है।
” बादशाह बोले “वाकई! मान गए बीरबल। बोलो, क्या पुरस्कार चाहते हो ?”
“अपने लिए कुछ नहीं, बल्कि इस औरत के लिए इनाम चाहता हूं जहांपनाह…।”
वैश्या की ओर इशारा करके बीरबल बोले “देना ही है तो इसे इतना दे दें जिससे इसे इस जीवन में पिशाचनी का रूप धारण करके पुरुषों को पतन के रास्ते पर ले जाने की जरूरत ही न रहे।”
बादशाह बोले “मुझे तुम्हारी यह बात और भी पसंद आई बीरबल।”
यह कहकर बादशाह ने वैश्या को बहुत सारा धन दिया और उसे पुनः वैश्यावृत्ति न अपनाने की चेतावनी देकर ससम्मान वहां से विदा कर दिया।
शिक्षा : नारी का चरित्र ही उसका सबसे श्रेष्ठ गुण होता है। उसका रूपवान या कुरूप होना उसके चरित्र के सामने नगण्य होता है। चरित्रवान होना ही श्रेष्ठ गुण है, रूप तो बाद की चीज होती है।